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जनवरी-मार्च-2022 विजय कुमार की रचनाओं पर एकाग्र 

 

  1. अपने तईं संपादकीय

  2. विजय कुमार- जीवन वृत

  3. काश कभी वैसी कविताएँ लिख पाऊँ

  4. एक बेचैन भारतीय आत्मा 

  5. कविता विजय के जीवन का विस्तार है 

  6. जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिये

  7. तसल्ली भरे सार्वजनिक समय में आपातकालीन द्वार की खोज

  8. हर शहर के

  9. विजय कुमार की कविताओं को पढ़ते हुए

  10. कविता जो एक काव्य स्थिति है

  11. अब कोई नहीं चीखे है इन वीरानियों में

  12. मैं शब्दकोशों के बाहर जीवन देख रहा हूं

  13. जिसमें जिया हुआ जीवन छिपा है, पर जो बोर्नवीटा का विज्ञापन नहीं है

  14. दोयम दर्जे के समाज में स्त्री नियति 

  15. मुंबई की गलियों से गुजरती विजय कुमार की कवितायें

  16. विजय कुमार की कविताओं में महानगरीय चिंतन

  17. विजय कुमार के काव्य की प्रासंगिकता एवं सृजनात्मकता

  18. बहुत से सच हैं पर कोई भी सच किसी दूसरे सच का हिस्सा नहीं  -संदर्भ : विजय कुमार और उनकी कविता

  19. विजय कुमार - ली जा रही जान-सी पुकारती कविताएँ

  20. मानवीय संवेदनाओं और अलक्षित जीवन की शिनाख़्त करती कविताएँ

  21. विजय कुमार की कविताओं में व्यक्त स्त्री संवेदना

  22. सफेद रंग का स्याह शहर

  23. विजय कुमार की कविता में हाशिये का जीवन

  24. विजय कुमार की कविताओं में नगरीय परिवेश

  25. आशंकाओं, असुरक्षाओं में लिपटा समय

  26. कविताएँ : विजयकुमार

  27. डेरेक वॉलकॉट की कविताएँ

  28. काव्य यात्रा के महत्वपूर्ण प्रस्थान: अदृश्य हो जायेंगी सूखी पत्तियाँ

  29. जीवन देखने की दृष्टि

  30. पूरा मनुष्य न हो पाने का दृश्य

  31. तुम शायद उसे देख नहीं पाओगे

  32. हम सब खड़े हो जाएँगे और दो मिनट का मौन रखेंगे-विजय कुमार के संग्रह ‘चाहे जिस शक्ल से’ के बारे में

  33. अंधकार के भीतर से : रात पाली 

  34. मैं ही जले हुए मकानों के भीतर एक बचा रह गया सपना अर्थात आधुनिक सभ्यता के संकट और संताप

  35. एक कवि की रात पाली

  36. 'चाबियाँ किन्हीं ओझल दरवाज़ों की... ' विजय  कुमार की कविता पुस्तक 'रात-पाली' के बहाने 

  37. रात-पाली : स्याह रोशनाई का उजास

  38. गझिन अंधकार में चमक

  39. विजय कुमार और उनकी "प्रिय कविताएं"

  40. काव्य-संकलनों से इतर कुछ कविताएँ : चमकदार समय के घने अंधेरे में संघर्ष और जिजीविषा

  41. कविता की संगत: विजय कुमार 

  42. काव्य की सहचर आलोचना का प्रति संसार...

  43. क्या कविता गवाही देगी

  44. कविता आलोचना में वाज़िब दखल: विजय कुमार

  45. मलयज : समग्र आकलन का प्रयास

  46. अंधेरे समय की वैचारिक यात्रा

  47. विचारों का व्यापक वितान

  48. एक खोये हुये शहर का रहगुज़र

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